पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२३४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०२
प्रेमघन सर्वस्व

श्रीमानिरावान्नाम वीर्यवान। सुता या नागराजस्य जातः पार्थ न धीमता॥ ऐरावतेन सादत्तांह्यनपत्या महात्मना। पत्यौहते सुपर्णेन कृपणा दीन चेतना॥ भार्यार्थ ताञ्च जग्राह पार्थ कामवशानुगाम। अजानन्नर्जुनं श्चापि निहतं पुत्रमौरसम्॥ जघान समरे शूरान राज्ञस्तान भीष्म रक्षिणः।" अर्थात् नाग राज की कन्या के विषय अर्जुन का वीर्यवान पुत्र श्रीमान इरावान नाम उत्पन्न हुआ। सुपर्ण के द्वारा उस कन्या का पति हत होने से नागराज महात्मा एरावत ने उस दुःखिता, विषस्मा, पुत्र-हीना कन्या को अर्जुन को दान किया। अर्जुनने उस विवाहार्थिनी कन्या का पाणिग्रहण किया॥ अर्जुन ने उस औरस पुत्र को न जान कर भीष्म-रक्षक पराक्रांत राजाओं को युद्ध में प्रहार किया"।

अब इसमे, दोनों बातें स्पष्ट सिद्ध हुई कि विधवाओं का पुनर्विवाह भी होता था, और विधवा पुनर्विवाहिता के पुत्र उसके दूसरे पति के काल के प्रथम ही से और पुत्र माने गये। फिर न केवल अर्जुन किन्तु देखिये कि जब विचित्रवीर्य मर गये, तो श्री वेदव्यास जी ने उनकी दो रानियों से दो पुत्र धृतराष्ट्र और पाँडु तथा उक्त राजा की दासी में विदुर को उत्पन्न किया। फिर यह तो मरे पर की दशा है, पौडु ने जीते जी अपनी स्त्री कुन्ती से आशाकर अपनी दोनों स्त्रियों में पाँच महाप्रतापी पुत्र पांडवों को देवताओं से उत्पन्न कराया, अर्थात् धर्मराज से युधिष्ठिर, वायु से भीम, इन्द्र से अर्जुन, और अश्विनीकुमार से नकुल और सहदेव। सो यह तो एक प्रकार की राहकी बात है। सच हैः—

"समयश्चापि साधूनां प्रेमाणं वेदवद्भवेत" अर्थात् साधु लोगों की व्यवस्था वेद की नाई प्रमाण होती है; परन्तु शोच की बात है कि हमारे देश के मनुष्य तो लकीर पर फ़कीर हो रहे हैं, इन्हें क्या मतलब कि किसी बात का विचार करें, वा सोचैं, समझैं, या खोज करें और सत् असत् तथा भले बुरे का विवेक करें! इन्हें केवल पशुओं की रीति खाना, सोना, और मर जाना मात्र आता है। इनसे यदि कोई इस बात की चर्चा भी कर दे, तो सौ गाली गे, कान पर हाथ रख कुत्ते सी जीभ निकाल कर चिक चिक करने लगेंगे। खीसे बाय बाय कर सियारों की भाँति कार काय कर खोपड़ी खाली कर डालेंगे। वा वन विलारों की भाँति घुड़ुक धुड़ुक कर लड़ने को मौजद हो जायगे, कोई कटोरी सा यूँ बाकर कहने लगेंगे कि भाई! बात तो साँची है पर जो आज तक नहीं हुई उसे करें यह कैसे हो सकता है?