पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२१२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

इसी से आज उनके महात्मा होने में शंका न रही, किन्तु शोक कि इतना बड़ा सहृदय सर्वगुण सम्पन्न महानुभाव, इस देश का एक अनुपम आधार, वास्तव में भारत का परम प्रकाशित नदान अकस्मात् अस्ताचलावलम्बी हुया! 'रस कुसुमाकर' को कुसुमित करने वाला स्वयं कुम्हला गया! शृंगार लतिका[१] नये प्रसूनों से सुसज्जित होने ही को थी, कि ऋतुराज बिदा हो गया! आज आज शृंगार हाट११ अलङ्कारहीन हो गया! 'नृसिंह द्वार१२से दृसिंह सुत नृसिंह जाता रहा। 'लता वन बिहार का विहारी चला गया! ् 'कुंज कुटीर१४ का कृजित विहंग उड़ गया। 'चन्द्र भवन'१५ की चन्द्रिका चन्द्रशेखर में जा बसी: 'गौरी द्वार'१६ के गौरव का भार उसका रक्षक गौरीकान्त को सौंप भागा! 'मुक्ताभास'१७ की प्राभा फीकी पड़ गई! 'गजमदन'१८ मलिन-बदन हो याज रानीमदन बन गया।

अचानक इस भयानक समाचार को सुन कर उनके इष्ट, मित्र, स्नेही और प्रशंसक गण चकित से हो गये, क्योंकि अभी कुछ ही दिन हुए कि उनका स्वास्थ्य एक प्रकार अच्छा सा हो गया था। श्रीमान् के स्वास्थ्य में गड़बड़ तो ग्रीष्म ही से प्रारम्भ हुआ था, जिस कारण वे श्री हरिद्वार ही ग्रीष्म काल भर रहे, किन्तु श्री गंगा जी ने उनको सांसारिक स्वल्य स्वास्थ्य के स्थान पर सदाकालीन सुख देना स्वीकार कर, उन्हें केवलं अपने इष्ट मित्र और बान्धों से परस्पर सम्मेलन मात्र के अर्थ ही कुछ अवसर दिया। यही कारण था कि दूसरी नवम्बर का दर्बार, अयोध्या राजसदन के पूवक्ति मुक्ताभास नामक राजभवन ही में हुआ, जिसमें कि फैज़ाबाद के कमिश्नर ने छोटे लाट के स्थानापन्न होकर महाराज को महामहोपाध्याय की पदवी सम्प्रदान सूचक राजकीय सनद दी और महाराज अपने सब इष्ट मित्रों, तअल्लुकदारी, पण्डितों, पारिषदों और बान्धवों में सस्नेह मिले और सब को समुचित सन्मान कर बिदा किया। महाराज को देख डाक्टर स्वीनी और स्थानिक सिविल सर्जन और मेडिकल बोर्ड ने अपने निदान में जन्य रोग को जलोदर का पूर्वरूप स्थिर किया तब चिकित्सार्थ कलकत्ते के सुप्रसिद्ध कविराज श्री द्वारिकानाथ सेन आह्वान किये गये और वे उत्मोत्म औषधियों का प्रयोग कर चले तथा रोग भी घट चला था। परन्तु महाराज ने स्पष्ट


  1. ये दो इनकी पुस्तकें हैं। १ से ८ ये स्थान राज्जसदन अयोध्या के भिन्न २ विभागों के नाम है।