ऐसी नहीं जिसमें सीधे से जाकर बैठ जाइये। इतने ही में रेलवे का चाभी वाला जमादार आकर कहने लगा कि—"हुजूर इन्टर क्लास में से तीन आदमी अभी उतरे हैं जाना है तो उसी में चले जाइये।" सुनते ही मैं प्रसन्न हो पहुँच ही तो गया और गाड़ी में बैठ गया। क्योंकि समझता था कि असबाब और मनुष्य सोचढ़ ही चुके हैं, बैठने को स्थान भी मिल गया है, 'अब विलम्ब केहि काज। बैठते ही देखता हूँ कि एक स्वनगर निवासी बंगवासी वा बङ्गाली माशा बेतहाशा हाँपते दाँपते गाड़ीके द्वार पर आ अड़े और बत्तीसी दिखा कर कहने लगे, कि-प्रोनाम प्रोनाम आहा! आप हैं अच्छा तो हाम भी आपकी सेवा में चालता है। थोड़ा जागाय हमारे बाश्ते भी दाव, आहा आपका साथ! बड़ा शौभाग्गो " मैंने कहा आइये आइथे जितने ही एगाने मिलें अच्छा ही है! बस, बाबू साहिब का घुसना था कि उनके पीछे लगे एक और अपरिचित व्यक्ति भी घुस आए। मैंने कहा, कि. वाह! यह तो "एक मशुद दोशुद!" अथवा तीन के फिर तीन पूरे हो गये, और स्थान का संकोच युन: पूर्ववत्। अपरिचित व्यक्ति तो उड़कर ऊपर लटकत! पलंग पर जा पड़े और उन बाबू साहब हमारे सन्मुख श्रा अई।
बाबू साहिब कोई ऐसे वैसे सामान्य व्यक्ति नहीं, उनके पूरे परिचय के लिथे तो कदाचित् एक अलग पुस्तक लिखने की श्रावश्यकता होगी। इसी से विशेष न लिख केवल इतना ही कह देते हैं कि आप लोग सागर को गागर में भरना मात्र सुन श्राश्चर्यित होते होंगे, परन्तु श्रापने सारे संसार को एक पुस्तकी में सन्निवेशित कर दिया है, अर्थात् अंगरेजी में 'संसार' अर्थदायक पुस्तक निर्माण किया है। अब उनकी सहजवार्ता भी कैसी कठिन होगी, इस. को पाठक श्रनुमान कर सकते हैं। उसकी लम्बाई चौडाई और खटाई मिठाई पर ध्यान दे सकते हैं। हम दोनों में वक्ता और श्रोता की योग्यता समझ सकते हैं। निदान जैसे ही बाबू साहिब मिहर्बान ने अपने व्याख्यान का श्रारम्भ किया कि बाहर से साथियों में से कई कहने लगे कि "उतरिये उतरिये हम लोगों ने जाकर स्टेशन मास्टर से कहा, और वह फर्स्ट क्लास पर आपको जगह देने को आरहे हैं। मैंने कहा, अब आप लोग तशरीफ ले जाइये मैं कहीं न जाऊँगा और न हवना आराम पाऊँगा। इतने में गार्ड ने सीटी बजाई और हरी झंडी दिखाई, मैं मंगल पाठ पढ़ता दम के दम में विन्ध्याचल