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बनारस का बुढ़वा मंगल

यथार्थ दृष्टिगोचर होती हैं। साहिब मैजिस्ट्रेट और कमिश्नर आदि सही प्रतिष्ठित राज कर्मचारी लोग आ डटे हैं। यह भी एक अपूर्व दृश्य है, विशेषतः इन मेंम लोगों का जमघट तो अद्भुत ही आनन्द ला रहा है,देखो तो इन गोराङ्गियों का कमर लचका-लचका कर इधर-उधर फिरना कैसा कुछ अनर्थ कर रहा है, यद्यपि ये सब सलज्ज लोचनों की मनोहारी चितवन और स्त्रीजनोचित झलमलाते वस्त्राभूषणों से सर्वथा हीन है, तो भी अनेक रन रजित वस्त्रों और विचित्र वेष रचना से सुहाती, उद्धत भाव से पुरुषों से हिली मिली, मानो मार की मिलीमार कर कुतूहल दिखला रही है। अहा! यह किसमिसी बाल बिखेरे बाल सी कमर वाली किसकी मिस है, कि जो बात करने के मिस किस सजधज से उस गोरे युवक का किस सा लेती विचारे को विह्वल किये डालती है। कोई किसी पर ताक लगाये,तो कोई किसी से हाथ मिलाये मेला और आतशबाजी का आनन्द देखती, अनेक आपस ही में मिल कर अपना मन बहला रही है। मानों ये सब गौराङ्गी उस प्यारी दुलहिन गौरी की सहचरी, और सहेलियाँ हैं, जो शिव जी के सहचरों से मिल मनमानी केलि कर रही हैं, और यह श्वेत कच्छा मानो श्वेत विभूति धारी भगवान गङ्गाधर के विवाह का मण्डप सा अनुमान होता है। बाह इस लाल महताब की ज्योति तो कुछ इन्हीं लोगों के मुख पर पड़ कर अपनी स्वार्थता दिखलाती है, और इनके गुलाबी गालों को गुलेलाला बनाती जाती है। जाने दो भाई! अब इधर अधिक देखना ठीक नहीं समय बहुत टेढ़ा है। अच्छा अब आगे की भीड़ हट गई है, और महाराज लोग भी इधर ही देख रहे हैं। बस उचित अवसर जान जैसे ही खड़े हो कर प्रणाम किया, कि इशारे से आज्ञा हुई कि यहाँ आयो, सोचने लगे कि इस भारी भीड़ में घुस कर कैसे वहाँ तक पहुँचेगे यह तो असम्भव ही प्रतीत होने लगा इतने ही में एक चोबदार पाया और भीड़ चड़ीता किसी-किसी भाँति मुझे उन पूज्य चरणों के समीप ला उपस्थित किया। प्रणाम करके बैठने पर कुशल प्रश्नादि सम्मान जो मुझ समान सामान्य जन के लिये अवश्य ही अपार कृपा का विस्तार था, पाकर परमानन्दित मन ने मान लिया कि जो सुनते थे कि—

शुनीदा कै बुअद मानिन्दे दीदा।"

(अर्थात् सुना देखे के तुल्य कब होता है) सो आज आँखों देखा निदान मैं अनेक दिनों के लालसा ललित अपने हृदय को अशांतिरिक्त तृप्त करने लगा। वहाँ उन परम पूज्य गोस्वामी महाराजों के स्वरूपों