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प्रेमघन सर्वस्व

हम लोग उनका प्रकृति-सिद्ध दोष जानकर चुप रहते हैं। आप के ललाट पर कभी हँसी वा प्रसन्नता का चिन्ह तो देख ही नहीं पड़ता; और जो कभी हँसने लगे तो सानो अनहोनी होती, अपने सिद्धान्तों के आप ऐसे पक्के हैं कि चाहे बृहस्पति और विदुर अथवा अरस्तू और अफलातून भी आकर क्यों न समझाये परन्तु आप उसे कभी न मानेंगे, हम लोगों की तो कोई बात ही ऐसी नहीं होती कि जिसे वे सुनते ही न काट दें। उनसे धम्मोन्नति, समाजोन्नति विद्या वा कला के किसी विषय को कहिए तो वे यही कहते कि "यह सब क्या दकते हो, व्यापार सोचो, व्यापार देखो! अंगरेज़ व्यापार ही के द्वारा आज जगत पूज्य हो रहे हैं केवल वक्तता और लेखनी घिसने से काम नहीं चलेगा। यदि उनसे किसी नए व्यापार की चर्चा चलाइये तो कहते कि "बुद्धि की औषधि करो"। कम्पनी का तो नाम लेते ही वे उछल पड़ते और कहते कि "देश बेईमान हो गया, हममें दो जने का साझा तो निभता ही नहीं, तुम कम्पनी करने चले हो; रहे अंगरेज़, सो उनके सामे में कभी हिन्दुस्तानियों को लाभ हुआ है, और जाने दो, उनसे हिसाब कौन समंभेगा। यदि किसी भाँति किसी नवीन कार्य के करने पर आरूढ़ भी कीजिए तो रुपया न फँस जाय, इसी शंका से हिचकिचाकर रह जाते हैं, पर हम लोग अपनी मित्र की बेसमय की फल शून्य बातें भी सादर सुनते और चुप रहते हैं, क्योंकि उनके रुष्ट हो जाने से डरते हैं।

आप अपने तीनों लड़कों को सिवा महाजनी, हिन्दी और कुछ नागरी वा संस्कृत के केवल पाठ करने को दो एक स्तोत्र के और कुछ नहीं पढ़ाते,और न किसी अँगरेजी फारसी पड़े के पास फटकने देते और कहते हैं कि इन लोगों की संगत से लड़के बिगड़ जाएंगे क्योंकि फारसी पढ़ने से इश्क बाज़ी तमाशबीनी और अय्याशी, चापलूसी, निकम्मापन और फाजलखर्ची एवम् अंगरेज़ी से नास्तिकता, धर्मविश्वास का ह्रान तथा दुःखशीलता और दुश्चरित्रता, एवम् निर्दयता, निस्पृहतादि दोष का स्वभाव ही हो जाता है। फिर यह कैसे सम्भव है कि उनके लड़कों के किनी चाल में अंगरेजी वा मुसलमानीपन लस्त्र पड़े। घर में उनके ढूंढ आइये तो कोई वस्तु दूसरे देश की वा ऐसी चाल को न मिलेगी जिसमें पूरी हिन्दुस्तानियत न रहे। आप उनसे किसा नवीन विद्या वा विज्ञान सम्बन्धी ५ प्रश्न करें तो ऐसा अद्भुत उत्तर देंगे कि श्राप यद्यपि चकित हो जायगे तो भी जब सोचेंगे तो बहुत कुछ सार पायेंगे। वे आप तो कुछ नहीं करते, परन्तु औरों को शिक्षा देना बहुत अच्छी रीति से