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गुप्त गोष्ठी गाथा


आप बड़े प्रातः काल उटते और नित्य कृत्य से मुक्त हो प्रथम साहिब लोगों से मिलने जाते हैं लौटकर ज्योंही आते, तो देशावरों की चिड़ियों के पुलन्दे पढ़ते और जवाब लिखते लिखते दोपहर बिताते, फिर भोजन कर के बहीखाता देखते, हुण्डी पत्री और सौदा तथा महाजनी मिती का भुगतान करते कराते, सन्ध्या को अफीम की गोली टीप और सायंकृत्य से छुटकारा पाकर नाना व्यापार तथा माल ताल का ज्ञान और पड़ता फैलाते, और द्रव्योपार्जन की चिन्ता में रात दिन दस बजाकर ब्यारी करते फिर रोकड़ के विधि मिलाते और पाव दमड़ी घटने बढ़ने से उसी की खोज में पड़े रहते, और रोकड़िहे से हुज्जत मचाते मचाते रात भर यों ही बिता डालते हैं। इसी से इन्हें दूसरों से बातें करनेका अवकाश भी कम मिलता है। हम लोग जो कभी आप के घर जाते तो वे यदि बड़ी कृपा करते तो आँख उठाकर एक वार प्रणाम, राम राम, सलाम कर लेते, तो मानो बड़ा अनुगृहीत बनाते, और यदि कुशल भी पूछ लेते तो लोग बहुत ही आश्चर्याविन्त होते, क्योंकि यही उनका बहुत बड़ा सत्कार है, और अभ्युत्थान वा खड़े होकर ताज़ीम देना तो वह अपने बाप के लिये भी उचित नहीं समझते, इतर कोई प्रतिष्ठित वा योग्य पुरुष की कौन गिनती है। परन्तु यदि कोई छोटे से छोटे भी राजकर्मचारी हो तो उसका नाम ही सुनते हाथ जोड़ दौड़ खड़े होत, और कालीवर्दी देखते तो आपकी धोती ही खुल जाती, क्योंकि स्वभाव के बड़े भीर हैं। विशेष कर डाक्टर, वकील, मुखतार और पुलीस के कर्मचारी तथा गुण्डों और बदमाशों से बहुत डरते। श्रीमान् भयङ्कर भट्टाचार्य का तो नाम ही सुनकर सूत्र जाते, क्यों. कि वे मारण मन्त्र का प्रयोग जानते हैं।

याप कभी कभी कृपाकर जब हम लोगों की गोष्ठी में श्रा जाते वा जिस किसी के घर पर सुशोभित हो जाते तो हम लोग उन्हें बहुत ही आदर से बिठालते, तो भी वे मुंह विचकाये ही रहते हैं। वे तो अपने घर किसी को एक बीड़ा पान या एक इलायची देते ही नहीं; परन्तु हम लोगों के घर आते तो भली भाँति खाते और साथ ही साथ निन्दा भी किये जाते हैं—हुँ हरापान! बंगला पान, सड़ी सुपाड़ी धुनी इलायची? सौ बरस का इत्र! यह सड़ा बिछौना! मसनद क्या है खटमलों की खान है। उफ़ इतने मच्छड़! बताओ यार क्या दीवाली में भी सफाई नहीं होती! सच तो यह है कि आप की मैली पगड़ी ही से खटमल आकर उनके मित्रों के घर घुसते हैं और जो आश्चर्य आप औरों के यहाँ मिथ्या ही करते, वह सब उनके घर सत्य ही वर्तमान् हैं। परन्तु

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