श्री अलौकिक लीला
महाकाव्य
प्रथम सर्ग
रोला छन्द
श्री बसुदेव सून है नन्द कुमार कहावत।
या मैं संसय नेक नाहिं नारद समुझावत॥१॥
यही देवकी—देवि—गर्भ अष्टम सों जायो।
कौन भांति किहिनै वाकहुँ गोकुल पहुँचायो॥२॥
जाकहँ मारन चहत रह्यो मैं मूढ़ जन्मतहिं।
बन्दी करि राख्यो देवकी बसुदेवहिं॥३॥
व्यर्थ भ्रूणहत्या अनेक करि पाप लियो सिर।
पै निज मारन हार मारि न कियो चित्त स्थिर॥४॥
यद्यपि कियो अनेक जतन वाके नासन हित।
पै न कृतारथ भयो होत सोचत चित चिन्तित॥५॥
जन्मत ही जिहि मारन हित पूतना पठायो।
निज उरोज विष लाय ताहि ले तिन उर लायो॥६॥
प्रान पान करि गयो तासु पय पीवन मिस झट।
शिशुपन ही मैं कियो काम जाने या दुर्घट॥७॥
तैसहि भंज्यो शकट सहज ही एक लात हनि।
जाहि निरखि वृजवासी गन चकि गये मूढ़ बनि॥८॥
तृणावर्त सम सुभट असुर लै ताकहँ अम्बर।
पहुँच्यो पै तिह तानै मारि गिरयो लहि भूपर॥९॥