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बह्यो रक्त छिति पंचनदादिक मनहुँ कुसुम रँग घोली।
हाहाकार धधाक दसो दिसि मची प्रजा मति डोली॥
सत्य आग्रह डफ बजाय सब नाचत मिलि हमजोली।
असहयोग की अबिर उड़ावत आवत भरि २ झोली॥
जय भारत कबीर ललकारत घूमत टोली टोली।
हिन्दू मुसलिम दोउ भाय मिलि कपट गांठ हिय खोली॥
चले स्वराज राह तकि तजि भय, सकल विघ्न तृण छोली।
विजय पताका लै महातमा गांधी घर घर डोली॥
खेलिहौ कब लौं ऐसी ही बारह मासी फाग।
कुटिल नीति होलिका जल्यो, असंतोष की आग॥