पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६५८

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होली—सिंदूरा


इन गलियन कित आवत हौ जू-
लाज शंक नहिँ लावत हौ जू ॥टेक॥
लै लै नाम हमारो गाली बंसी बीच बजावत हौ जू॥
छैल अनोखे आप जानि जिय, जापै जोर जनावत हौ जू॥
लालन ग्वालन बाल लिये लखि अलिन नवेलिन धावत हौजू॥
बालन के भालन गालन मैं लाल गुलाल लगावत हो जू॥
पिचकारी छतियन तकि मारत, चोली चीर भिजावत हौ जू॥
गाय कबीर अहीरन के सँग निज कुल नाम नसावत हौ जू॥
पी पी भंग रंग सों रँगि तन डफ करताल बजावत हौ जू॥
ऊधम धूधरि अधम अलौकिक धूम धमार मचावत हौ जू॥
बेटा बाप बड़े के हो क्यों कुलहि कलंक लगावत हौ जू॥
श्री बद्री नारायन जू फिर स्याम सुजान कहावत हौ जू॥
क्यों यह अँड़ दिखावत हौ जू, बादहिं बैर बढ़ावत हौ जू॥टेक।।
जैहौ सीख स्याम सब दिन की, काहे मन अकुलावत हौ जू॥
बदरी नारायन जू जो आज चले इत आवत हौ जू॥

होली की फुटकर चीज़ें
कान्हरा


सखियां फाग के दिन आये रे॥टेक॥
किलकत कोकिल चढ़ि डार डार धुनि सुनि मुनि मनहि लुभाये रे॥
श्री बद्री नारायन कविवर, गावत राग फाग तिय घर घर,
बन ललित पलास विकास सरस, सोहे गुलाब गहि, आब नवल
लखि मधुकर मनहि लुभाये रे॥

जानी जानी लँगर तोरी ये लँगराई रे।
मारी पिचकारी सारी हमारी भिजोई रे॥