पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६५२

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रूप अनूप दियो बिधि ने तौ मत अभिमान करो री
बद्रीनाथ नेक नहिं चितवहु प्रानै लैन चहो री
राम सों नेक डरो री॰
मुरली धुनि तान सुनाई रे॥टेक॥
मांगि लियो मेरो मन बरबस मन्द मधुर मुसकाई।
चंचल चखनि चितौत तिरीछे चित चित चोर चुराई॥
मैन हिय अन बनाई॥
बीर अबीर मल्यो मुख मेरे नटखट करि लँगराई।
श्री बदरी नारायन जू पिय कीनी अजब ढिठाई॥
छयल छतियां सों लगाई॥

होरी की यह लहर जहर हमै बिन पिय जिय दुख दैया॥टेक॥
सीरी सरस समीर सखी री! सनि सनि सौरभ सुख सरसैया,
परसत तन उर उठत थहर। होरी की यह॰॥
कुंज कछार कलिन्दी कूलनि कल कोकिल कुल कुंज कसैया,
काम करद सम करत कहर। होरी की यह॰॥
बन बागनि बिहगावलि बोलत बाजत बिमल बसन्त बधैया,
पड़त कान सांचहु सुख हर। होरी की यह॰॥
बद्रीनाथ यार सों कहियो ए चितचोर! सुचित्त चुरैया,
तेरी रहत सुधि आठो पहर। होरी की यह॰॥

राग कलङ्गरा वा ललित


आये री होली के दिन नीके॥टेक॥
भरि अनुराग फाग चलि खेलहु सँग प्यारे पर पीके॥
तजि कुल लोक लाज गुरुजन भय करहु काज निज ही के॥
श्री बदरी नारायन मिलि सब कसक मिटावहु जी के॥

सखियां औचक भोरी रे, उलझ गईं अँखियाँ॥टेक॥
बिन देखे नहि चैन इन्हें छन लाज संक सब छोरी री॥

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