पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६४७

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होली खेलत है व्रजराज आली रंग रँगे॥टेक॥
गावत रँग बरसावत आवत,
साजे साज समाज ग्वाला संग लगे॥
हिलि मिलि मलत गुलाल गाल मैं,
त्यागि परस्पर लाज नागर प्रेम पगे॥
 
बद्रीनाथ सखी ललकारत,
लैंहों दांव सब आज अब कित जात भगे॥

रंग उड़ि रहे वीर अबीर आहा! आज लखो॥टेक॥
लाल पाग सिर लसत लाल के लाल बाल वर बीर,
ललित अभूषन लाल लाल के, लालै ग्वाल अहीर॥
लाल कुंज लहि लाल प्रसूनन, लाल कलिन्दी नीर,
बद्रीनाथ लाल ललना लखि हेरि हरत भव पीर॥

जमुना तीर खड़े होली खेलत, नन्द के लाल॥टेक॥
इत ते श्याम उड़ावत केसर, रोरी रुचिर गुलाल।
उत पिचकारी भरि भरि धावत मारत हैं बृज बाल,
जमुना तीर॰
बाजत ढोल मृदंग झांझ डफ मंजीरा करताल,
भरे मदन मद सब ब्रजवासी गावत तान रसाल,
जमुना तीर॰
इतने में प्यारी प्रीतम संग कियो अजब यह ख्याल,
चपला सी चौंधी दै मलि गई लाल गुलालन गाल,
जमुना तीर॰
बद्रीनाथ सदा चिरजीवो ह्वै नित जुगल बहाल,
मो मन मैं अब आय बसो करि दया सदा यहि चाल,
जमुना तीर॰