पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६४१

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(४८) होली रा॰ भैरवी ताल तीन


बन में आई बहार यार तेरे, आई बहार जोबन की॥
सरस वसन्ती सारी सी, सर सो विकास सुमनन की॥
सोहै सरनि सरोरुह सम जुगलन उरोज उभरन की॥
लाजे चंचल चंचरीक, लखि लोचन चपल चलन की॥
श्री बद्री नारायन निखरी तन छबि ललित लतन की।