पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६३१

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काफी या बिहाग


कर चुरियां करकाई रे, अति डीढ कन्हाई।
बिलमावत, गावत, मुस्कावत चित चित चोर चुराई रे।
शोभापुंज कुंज मैं आली, औचक आन मिल्यो बनमाली
बद्रीनाथ हाथ दै गालन, लाल गुलाल लगाइ रे।

दूसरी


मग रोकत बनवारी रे पनियां कैसे जये।
लंगर डगर बिच रगर करत नित, आवत गावत गारी रे।
बद्रीनाथ छैल छतियां तकि, मार भजत पिचकारी रे।

तीसरी


आज कहूं जनि जाहु कही मानो यह प्यारी।
लंगर डगर ही बीच खरो मारत पिचकारी॥
आवत धावत रंग बरसावत सखिन संग गावत बहु गारी।
बद्री नारायन ब्रज खेलत फूले फाग रसिक बनवारी॥

और चाल


आज लाज ब्रज राज तजि सखियन संग सजे।
गाली गावत रंग बरसावत गुरजन संक तजे॥
गाल गुलाल अंग रंग केसर लखि लखि मैन लजे।
बद्रीनाथ विलोक नवल छवि मुनि मन हाथ भजे॥

दूसरी


होली के खेलवार यार—भाजे अब कित जात चले।
जान जान नहि पैहो अब बिन गाल गुलाल मले॥
बद्रीनाथ दांव सब दिन को लै हौं आज भले॥