पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६१३

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(३)


छन ही छन छन छवि की छवि है छहरत आज छबीली रामा
हरि हरि घिरी घटा घन की क्या कारी कारी रे हरी।
हरी भरी क्या भई भूमि तरु ललित लता लपटानी रामा
हरि हरि बहै पवन पुरवाई प्यारी प्यारी रे हरी।
गुंजत मञ्जु मनोज मंत्र सम अलि पुंजन कुंजन मैं रामा।
हरि हरि, फवे फूल जंगल औ झारी झारी रे हरी।
श्री बदरीनारायन जुवती जन मिलि झूला झूलै रामा।
हरि हरि गावैं कजरी सावन बारी बारी रे हरी।

ठुमरी


झूलै राधा संग बनमाली आली कालिन्दी के तीर।
नचत कलापी कदम कुंज किलकारत कोकिल कीर।
बिकसे जहां प्रसून पुंज गुंजारत भौरन की भीर।
लचत लंक लचकीली लचकत प्यारी होत अधीर।
निरखि प्रेमघन प्रेम विवश ह्वै भरत अंक बलबीर॥

बधाई—रागदेस—काफी की लय


नन्द घर बजत अनन्द बधाई
हरि जनम लियो बृज आई॥टेक॥
नन्द महर संग गोप सबै मिलि धन सम्पति लुटाई।
जाचक होय निहाल असीसत पाय दान मन भाई।
देन बधाई काज दूब दधि रोचन थार भराई।
चली करत कल गान ग्वालिनी सुर बनितान लजाई।
पकरि परस्पर करि रंगरलियां नाचत धूम मचाई।
उमड्यो आनन्द सिन्धु आज बृज मंगल छवि छिति छाई।
बरसत सुमन सकल सुर अम्बर जय जय जयति सुनाई।
गावत सुजस प्रेमघन बदरीनारायन जिय हरषाई।