पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/६१०

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दूसरी लय


दोऊ राग मलारहिं गावैं झूलत स्यामा स्याम सजे,
सोभा रति काम लजावैं॥टेक॥
प्यारे सिर मोर पखा फहरैं, प्यारी लट जाय तहां लहरै,
बनमाल उरझि मुक्ता थहरैं, गर लागन हित ललचावैं।
लहि झोक हिडोर पिया हरि कै, ललटात
ललकि हिय सो हरि के, बस प्रेम प्रेमघन भुज भरिकै
मुख चूमि चूमि अनखावैं॥

दूसरी चाल


अहा कैसी छवि छाय रही।
झूलन की झूलन भाय रही॥टेक॥
मचकत हिंडोर, नासा सकोर, पिय हिय प्यारी लपटाय रही।
सिसकीन सोर, भौंहनि मरोरि, चपलति चख चोट चलाय रही॥
पिय पाय प्रेमघन प्रेम विवस हरखाय प्रगट सतराय रही॥

बहार (१)


अब तो लखिये अलि ए अलियन,
कलियन मुख चुम्बन करन लगे॥टेक॥
पीवत मकरन्द मधुर माते, मनु अधर सुधा रस मैं राते,
कहि केलि कथा गुंजरन लगे।
अनुरागे बदरी नारायण, घन प्रेम, प्रेम में होय मगन,
लिपटे प्रसून मन हरन लगे॥

(२)


ऐरी मतवाली मालिनियां, किंत जादू डाले जात चली॥टेक॥
दिखलाय हाय! कछु कहि न जाय।
उघरत चंचल अंचल छिपाय,
उभरे औचक कुच कंज कली॥