पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५८४

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चंद अमंद बदन सुंदर पर, लाल प्रबाल सदृश मधुराधर।
मंद मंद मुसुकाय हाय बरबस बस कीनो रे॥
श्रीबद्रीनारायन दिलवर, डाल दियो जादू जनु हम पर।
अब नहिं नेक नजर चितवत, छलिया छल भीनो रे॥

चित चितवत होय अचेत गयो,
बांकी बिलोकि बृजराज बनक॥टेक॥
सबही सुधि भूलि भटू भरमाती—
नित कुंज गली सुनि श्याम सनक॥
बद्रीनारायन बिबस भई सुनि तान तान बंशी की भनक॥

ये लँगराई के बैन सनम! हमसे न बनाओ रे॥टेक॥
गैरों के गले लग जाते हो, लख के हमको शरमाते हो॥
बद्रीनारायन जू प्यारे अब तो न सताओ रे॥

प्यारे पीव हमारे नयन तुम पै उल्झाने (यार)॥टेक॥
बद्रीनाथ मोहनी मूरति, मानहुँ ढली सील की सूरति,
लखि लखि मैन लजाने॥

हो चलो छोड़ो हमे मुरकी कलाई रे॥टेक॥
बदरीनारायण पिय जोर न जनाओ,
जाओ रिस जनि उपजावो, जो चाहो अपनी भलाई रे॥

दिखला मुख टुक चांद सरिस,
तन मन धन डालुँ वारियां॥टेक॥
बदरीनाथ चितै चित चोरत, चंचल चख रतनारियां॥

इन बगियन फेर न आवना॥टेक॥
चंचल चंचरीक चंपा मैं, चखि जनि जनम गवांवना।
बदरीनाथ बसंत बीते पर फिर पीछे मत आवना॥