पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५८२

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मधुर अधर धर मुरली टेरत हेरत सब दुख हारी॥
जा छबि ध्याय प्रेमघन प्रेमी सांचो भयो परम सुखारी॥

चञ्चरीक छंद


जयति जय भानु भगवान भासित प्रभा
सकल ब्रह्माण्ड भण्डार भरता।
प्रभु तुमहिं करत पालन अखिल लोक,
नासत सकल सृष्टि पुनि सृष्टि करता॥
तुमहिं ब्रह्मा, तुमहिं विश्नु, हर, इन्द्र, यम,
वरुन धनपति सकल सक्ति धारी।
सुरा सुर यक्ष गन्धर्व किन्नर मनुज नम-
स्कृत भक्त भय भीर हारी॥
विप्र वर वेद पारग सकल ऋषि मुनिहुँ
उभय सन्ध्या समय तोहि ध्यावैं
शोक दुहुँ लोक विनसाय विन स्रम कृपा
लेस तुव सकल फल सहज पावे॥
पूजि श्री राम तोहि युधिष्ठिर, नल, नहुष
नृपति संकट सकल निज नसायो।
प्रेमघन सहित आराधि तोहि प्रेमघन,
सहजहीं दोष दुख दल बहायो॥

वसन्त


जय जयति प्रभाकर जय दिनेस।
जय दीनन के काटन कलेस॥
गावत गुन गन जाको गनेस।
थकि रहत वेद संग सकुचि सेस॥
जय जय जल करसन करन दान।
कर निकर सहस धारी महान॥