पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५७५

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घेरि घटा आई दामिनी, चमक रही चहुँ ओर॥
बद्रीनाथ पिया जिन मानत, नहि मन मोर॥

बरसाती खेमटा


चले आओ मेरे सैलानी।
उमड़ि घुमड़ि घन घटा झूमि छित चूमत बरसत पानी॥
सूने भवन सजी सेजिया यह बद्रीनाथ दिलजानी॥

पूरबी


प्यारे तुम्हारे जोबन मतवारे—जुलमी जालिम जोर॥
चोली लाल बाल तन जोबन, मोह लियो मन मोर॥
झूमक कान, नाक नथ बेसर, गजब झुलनियां तोर॥
बद्रीनाथ अबीरी टीका, तुरत लियो चित चोर॥
मारत यार नयन की बरछी, अब क्यों भौंह मरोर॥

सावन


कोऊ कहो सावन मन भावन आवन नन्द किशोर रे॥
प्यारी घटा घिरि आई चहूँ दिशि, गरजत नभ धन घोर॥
दामिनि दमकि दमकि डरपावत बहत बतास झकोर॥
पापी पपीहा पिया पिया बोलत करत सोर वन मोर रे॥
बद्रीनाथ पिया परदेसवा, बिलमि रहेल चित चोर॥

हिंडोरे झूलत प्रेम भरे,
झूलत लाल लली हैं झुलावत, सब व्रज बाल खरे॥टेक॥
प्यारी मुख पैं बेसर राजत मोती माल गरे, इत
मनमोहन होत सुसोभित बंसी अधर धरे, हिंडोरे॥
गाय मचाय मचाय सरस रस, सब दुख द्वन्द हरे॥
बद्रीनाथ देखि नभ शोभा, सुर गन सुमन झरे॥