पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५७२

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हिंडौर का खिमटा


हिंडोरे रे झूले राधिका श्याम॥टेक॥
बृन्दाबन कालिन्दी के तट सुखमा अति अभिराम॥
बंसी टेरत हरि उत आवत गावत प्यारी ललाम॥
झूलत लाल लली हैं झुलावत सखि वृजवासी बाम,
बद्रीनाथ नवल यह शोभा निरखत रहत मुदाम॥
हिंडोरे उझकि झुकि झूलै॥टेक॥
मनमोहन बृषभानु नंदिनी, कुंज कलिन्दी कूलैं॥
बद्रीनाथ देखि सुभ शोभा मगन मदन मन भूलैं॥

श्याम हिंडोरवा झूलैं री गुय्यां जमुनवां के तीर॥टेक॥
मोर मुकुट बनमाल बिराजत, कटि तट सोहत चीर॥
लचत लंक लचकीली झूलत प्यारी होत अधीर॥
ललित कंचुकी दीसत फहरत अंचल लगत समीर॥
बद्रीनाथ हियें बिच बिहरो—राधा श्री बलबीर

सावन


सावन सूही सारी सजि सखी सब झूलैं हिंडोर॥टेक॥
कोयल कूकत कुंजन, मोर मचावत सोर॥
घेरि घटा आई दामिनि चमकि रही चहुँ ओर॥
बद्रीनाथ पिया बिन मानत नहीं मन मोर॥

हिंडोरा वा झूला
राग सोरठ मलार


उझकि झुकि झूलनि छबि न्यारी, हिंडोरे म पिय सँग प्यारी॥टे॰॥
सजल जलद जूमि जूमि नभ घूमि घूमि झूमि झूमि
लेत छिति चूमि चूमि छन छन छन छवि छहरात
दरसात, पात पातनि बून पात वारी॥