पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५७१

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घटा घन घेरी, सुनरी एरी॥टेक॥
चमकि चमकि चपला डरपावे, सूनी सेजिया मेरी॥
श्री बद्री नारायन जू पिय आवत है सुधि तेरी॥

बरसाती खिमटा


क्या अलबेली नवल ऋतु आई रे॥टेक॥
स्याम घटा घन घोर सोर चहुँ—ओरन देत दिखाई रे॥
चमकि चमकि चंचला चोरि चित—दिशि दिशि देत दरसाई रे॥
करत सोर चहुँ ओर मोर गन—बन बन बोल सुहाई रे॥
बद्री नाथ पिया की आली—अजहुँ न कछु सुधि पाई रे॥

आली काली घटा घिरि आई रे॥टेक॥
सनि सनि सरस समीर सुगंधन सनकत सुख सरसाई रे॥
बद्री नाथ अजौं नहिँ आये सजनी सुधि बिसराई रे॥

आज आली मोर बन बोलैं॥टेक॥
घन करि करि मतवारे—दत वारे सम डोलैं॥
ता छन बद्रीनाथ पियारे सौतिन के संग डोलैं॥

चले जाओ ए मेरे सैलानी॥टेक॥
उमड़ घुमड़ घन घटा घूमि छिति चूमत बरसत पानी॥
सूने भवन सजी सेजिया यह बद्रीनाथ दिलजानी॥

झूला गौरी में


बलिहारी बिहारी न झूलूँ॥टेक॥
थरथरात पग हरहरात हिय बारी बयस हमारी॥
श्री बद्रीनारायन दिलवर धाय धाय लगि जाय आय गर हाय।
सुनत नहिँ अरज गरज तुम मोहें डर लागत भारी॥