पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५५८

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बेचत गाय कसाई के कर! केऊ हरकत नाहीं रामा!
हरि! २ जुरे नात औ भाई सबै सयनवाँ रे हरी!
जोबन जोर जवानी के मद माती मैं अलबेली रामा!
हरि! २ तेके हेरेनि बर बालक नादनवां रे हरी!
मारे डर के सूखै! नजर मिलावै काउ बेचारा रामा!
हरि! २ एड़ी उचकायहु ना छुवै जोबनवां रे हरी!
धीर धरौं केहि भांति! कहत कुछ हमसे बने नहीं रामा!
हरि! २ कैसे जाबै! केकरे सँगे! गवनवा रे हरी!
जथाजोग बर सुन्दर देय पिता मता लड़िकी के रामा!
हरि! २ बरु न देय दयजा, कपड़ा गहनवां रे हरी!
मात पिता तो धोखा दिहलेनि लखि हाल दूलह की रामा!
हरि! २ रामचन्द्र अब तौ तुहँई सरनवाँ रे हरी!
काहू बिधि बीते मधु माधव मास कठिन रितु आई रामा!
हरि! २ बोलन लागे मोरवा बनवां बनवां रे हरी!
चलिबे नीको लगो पवन पुरवाई बदरा छाये रामा!
हरि! २ लागे अब तो हाय! सरस सावनवाँ रे हरी!
लगो प्रान अगुतान कैसहूँ धीर धरो ना जाई रामा!
हरि! २ मारन लागो मैन पैन बाननवाँ रे हरी!
बरु विष खाय मरब! सूतब हनि कारी करद करेजवां रामा!
हरि! २ निकरि जाब की काहू के गोहनवां रे हरी!
ऐसे देस जाति कुल रीति नीति में है निबाह कै रामा!
हरि! २ कहौ प्रेमघन दूसर कवन जतनवाँ? रे हरी॥१३९॥

तीसरी
बाला वृद्ध विवाह


चलः हट: जिनि झांसा पट्टी हमसे बहुत बघारः रामा।
हरि २ फुसिलावः जिनि दै दै बुत्ता बाला रे हरी॥

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