पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५४३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
—५१९—

नटिनों की लय


तोरे पर गोरिया लुभानी रे सांवलिया॥टेक॥
गोल कपोलन पै लखि लांबी,
लट लोटत छितरानी रे सांवलिया॥
मोर मुकुट सिर चपलित लोचन,
की चितवन अलसानी रे सांवलिया।
मिलि रस बरसु प्रेमघन तोपैं,
बिनहीं मोल बिकानी रे सांवलिया॥११३॥

उर्दू भाषा


बारिश के दिन आए प्यारे प्यारे।
उमड़ चलीं नदियाँ औ नाले, झील सबी उतराये प्यारे २।
हुई ज़मीं सर-सब्ज़ खूब रँग रँग के फूल खिलाये प्यारे २॥
खुश-इलहानी से हैं पपीहे, कैसा शोर मचाये प्यारे २।
मस्त हुए ताऊस नाचते हैं, पर को फैलाये प्यारे २॥
रंगि-हिना दस्तो पा में हैं, गुलरूओं ने लगाये प्यारे २।
झूल रहे हैं झूले, बाले जुल्फ़ों से उल्झाये प्यारे २॥
हरी भरी बेलों को हैं अशजार सबी लिपटाये प्यारे २।
बाराने रहमत हैं बरसते "अब्र" चारसू छाये प्यारे २॥११४॥

नवीन संशोधन


मोहे मन बँसिया बजाय कै रे सांवलिया।
बँसिया बजाय कै, सरस सुर गाय कै,
मीठी २ तान सुनाय कै; रे सांवलिया;
नैनवां नचाय कै भउहं मटकाय कै,
मधुर २ मुसुकाय कै; रे सांवलिया॥
नेहियां बढ़ाय कै; ललचि ललचाय कै,
तन मन मदन जगाय कै; रे साँवलिया।

३५