पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५४१

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धरिकै घुँघट खोल खाल जसुदा के लाल।
लाज तजि करः देख भाल जसुदा के लाल॥
बहियां गरे के बीच घाल जसुदा के लाल।
चूमः हाय अधर रसाल जसुदा के लाल॥
केथुवौ के करः न खियाल जसुदा के लाल।
झकझोरि तोरः मोती माल जसुदा के लाल।
जाय घरे कही जौ ई हाल जसुदा के लाल।
परि जाय वृज में जवाल जसुदा के लाल॥
प्रेमघन परि प्रेम जाल जसुदा के लाल।
राखः चित रचिक संभाल जसुदा के लाल॥१०८॥

चौथा प्रकार
सांवलिया
सामान्य लय


धनि विन्ध्याचल रानी रे साँवलिया॥
जलधर नवल नील सोभा तन चित चातक ललचानी रे॥
भादवं बदी दुतीया गोकुल नन्दभवन प्रगटानी रे सां॰॥
तू जग जननि जोगमाया जसुदा दुहिता कहलानी रे सां॰॥
बदलि कृष्ण बसुदेव तोहि लै आए बृज रजधानी रे सां॰।
कृष्ण अष्टमी की निसि गोकुल सों मथुरा में आनी रे सां॥
देवि देवकी गोद विराजत चिघरि २ चिल्लानी रे सां॰।
रोदन मिसि जनु कंसहि टेरति देवकि बन्दि छुड़ानी रे॥
सुनि सठ दौरि धाय तहँ पहुँच्यो डरपत हिय अभिमानी रे।
पटकन चह्यो उठाय तोहि धरि बल करि अतिसय तानी रे॥
चमकि चली चपला सी छूटि तब तू मरोरि खलपानी रे॥
पहुँचि गगन पर बिहँसत बोली कंस विध्वंसन वानी रे॥