पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५३८

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देखि २ ठोढ़िया कै ढाल रे करँवदा।
पकि चुइ परल रसाल रे करँवदा॥
लखि कुच कठिन कमाल रे करँवदा।
दाड़िमहुँ भयल हलाल रे करँवदा॥
ससि पर आयल जवाल रे करँवदा।
लखि भल चमकत भाल रे करँवदा॥
प्रेमघन घन अलि नाल रे करँवदा।
लाजे लखि घुँघराले बाल रे करँवदा॥१०३॥

चतुर्थ भेद
ढुनमुनियाँ की कजली
लोय


धावन लागे बादरवा मचावन लागे सोर मोर।
मिले मोरिनी संग कलोलैं नाचैं चारो ओर मोर।
बाढ़न लागी पीर काम की जौबन कीनो जोर मोर॥
लागै नाहीं जिया सखी री बिना मिले चितचोर मोर।
बालम बसे बिदेस प्रेमघन भूले प्रेम अथोर मोर॥१०४॥

नागरी भाषा


दसो दिशा में दमक रही दामिन है देखो बार बार।
प्रभा प्रकृति प्रगटाती है अम्बर का अम्बर फार फार॥
घिरकर काली घटा बरसती बूँद सुधा सी गार गार।
उमड़ २ कर बहता है जल झील नदी औ नार नार॥
वर्षा ऋतु आई सुखदाई तपन ताप कर पार पार।
हरी भरी छिति भई, झुके तरु हरियारी के भार भार॥
बहती बेग भरी पुरवाई खिले सुमन सब झार झार।
नाच रहे हैं मोर पपीहे, पिहंक रहे हैं डार डार॥