पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५१७

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दूसरा प्रकार
मनोहर मिश्रित भाषा
सामान्य लय


मैं बारी कहाँ जाऊँ अकेली, डगर भुलानी रे सांवलिया।
कुञ्जगली में आय अचानक, बहुत डेरानी रे सांव॰॥
डगर बता दे गरवाँ लगा ले, निज मनमानी रे सांव॰।
चेरी हूँ जी से मैं तेरी, रूप दिवानी रे सांवलिया।
सुन जा हाय! तनिक तो मेरी, प्रेम कहानी रे सांव॰।
ये अँखियाँ तेरी अलकन में हैं उलझानी रे सांवलिया।
काह बिचारै आह उतै तू, भौंहन तानी रे सांवलिया।
पिया प्रेमघन आओ बेगहिं दिलवर जानी रे सांव॰॥४२॥

गृहस्थियों की लय


साँवरी सुरतिया नैन रतनारे, जुलुम करैं गोरिया रे तोरे जोबना॥
मोहत मन तोरे दाँते कै बतिसिया, करत चित चोरिया रे तोरे॥
देखत हीं हिय पैठत मनहुँ, कटरिया कै कोरिया रे तोरे जो॰।
रसिक प्रेमघन को मन छोरि, लेत बरजोरिया रे तोरे जो॰॥४३॥

दूसरी


कारी घटा घिरि आई डरारी, दुरि २ दमकैं री दामिनियाँ॥
प्यारी पुरवाई सुखदाई, भाई चंचल गति गामिनियाँ॥
झिल्ली दादुर मोर पपीहा, सोर मचावैं जुरि जामिनियाँ॥
बिहरत संजोगिनी प्रेमघन बिलखत बिरही जन कामिनियाँ॥४४॥

नटिनों की लय


नैन तोरे बांके रे गूज रिया॥
चितवत ही चित ऊपर परत, आय जनु डाँके रे गूजरिया॥