पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५१४

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लखिके सुन्दर गूजरी, तजिकै सखियाँ सगरी,
गर लगि मेरे सब रस लूट दैया! कारो ठगरी॥
कीजै जतन कवन अबरी, लखि लखि हँसै सबै जगरी,
प्रेमी बनो प्रेमघन घूमै मेरे संग संग लगरी॥३०॥

द्वितीय विभेद


विकृत लय


जाऊँ तोरे संग मुरारी—मैना! मैना! रे मैना!॥टेक॥
मैना! मानूँ बात तिहारी—मैना! मैना! रे मैना!
मैना! जाऊँ घरवाँ मारी—मैना! मैना! रे मैना!
मैना! जाऊँ तोपैं वारी—मैना! मैना। रे मैना!
मैना! करिहों तोसे यारी—मैना! मैना! रे मैना!
मैना! निरी प्रेमघन बारी—मैना! मैना! रे मैना!
मैना! ब्याही तेरी नारी-मैना! मैना! रे मैना॥३१॥

दूसरी


मैना सुनहौं गाली, बोलो बात सँभाली रे मैना।
मैना तेरी तरह कुचाली, सुन बनमाली रे मैना॥
मैना! तेरे घर की पाली, सरहज साली रे मैना!।
मैना! लेवँ कान की बाली, झूमकवाली रे मैना!॥
मैना! ऐसी भोली भाली, रीझूँ हाली रे मैना!।
मैना! प्रेम प्रेमघन घाली, बैठी खाली रे मैना!३२॥

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नागरी भाषा


सजकर है सावन आया, अतिही मेरे मन को भाया।
हरियाली ने छिति को छाया, सर जल भरकर उतराया।