पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४९८

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कहां तू उसे बेवफ़ा चाहता है।
अरे दिल तू यह क्या किया चाहता है॥
नक़ाब उसके रुख से हटा चाहता है।
ख़िज़िल माह कामिल हुआ चाहता है॥
ब फ़ज़ले खुदा अव मेरे दौर दिल में।
किया घर व बुत महेलका चाहता है॥
हँसा गुल जो शाख़े शजर में तो समझो।
कि अब यह ज़मीं पर गिरा चाहता है॥
बिछा गाल के तिल पै है दाम गेसू।
मेरा तायरे दिल फँसा चाहता है॥
यह शाने खुदा है कि वह बुत भी बोला।
मेरा बख़्ते खुफ़्ता जगा चाहता है॥
मेरे लग के सीने से वह हंस के बोला।
बता तू क्या इसके सिवा चाहता है॥
सुना रोज़ करते थे जिसकी कहानी।
वही आज मुझसे मिला चाहता है॥
ज़रा इक नज़र देख दे तू इधर भी।
यही दिल किया इल्तिजा चाहता है॥
बरसता रहे "अब्र" बाराने रहमत।
यही अब्र देने दुआ चाहता है॥१०॥
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बन में वो नंद नंदन बंसी बजा रहा है।
मन में व्यथा मदन की मेरे जगा रहा है॥
जब से मनोज मोहन मन में समा रहा है।
जिस ओर देखती हूँ वह मुसकुरा रहा है॥
भौंहें मरोड़ कर मन मेरा मरोड़ता है।
मैनों की सैन से बस बेबस बना रहा है॥