पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४८९

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जां निकलती है ग़मे फुरकत में तेरे ऐ सनम।
अब भी तो बेताब दिल को ताब देना चाहिए॥
रोज़ हिज़रां की नहीं होती है उमरों में भी शाम।
अभी कुछ दिन और तुमको सब्र करना चाहिए॥
बोसये लाले लबे शीरीं की क्या उम्मेद है।
अब तुझे फरहाद थोड़ा ज़हर चखना चाहिए॥
सांस का आना हुआ दुशवार फुरकत से तेरे।
अब तो मिसले मोम दिल को नर्म करना चाहिए॥
अर्ज सुन बदरीनारायन की वहीं बोला वो शोख।
तुमको अपने दिल से नाउम्मीद होना चाहिए॥२॥

मेरी जान ले क्या नफ़ा पाइएगा।
छुड़ाकर ए दामन किधर जाइयेगा॥
जो कहता हूँ अब रहम हो जाय मुझ पर।
तो कहते हैं फिर आप आजाइएगा॥
किया कत्ल तेगे निग़ह से जो मुझ को।
कदमरंजा मरकद पर फरमाइएगा॥
इनायत करो हुस्न के जोश में वरना।
फिर हाथ मल मल के पछताइएगा॥
वो हँसते हैं सुनकर जो कहता हूँ उनसे।
जलाकर मुझे आप क्या पाइएगा॥
निकलवा के छोड़ेंगे बदरीनारायन।
अगर आप मेरे तरफ आइएगा॥३॥

जो तेगे निगह वो चढ़ाए हुए हैं,
यहाँ हम भी गरदन झुकाए हुए हैं।
इन्हीं शोला रूओं ने शेखी सितम से,
जलों के जले दिल जलाये हुए हैं।