उर वनमाल मृणाल बाहु युग चाल रसाल गयन्द।
बद्रीनाथ मिलो अब प्यारे, छाड़ि सकल छल छन्द॥१४॥
जन्म भयो वृजराज आज अलि॥टेक॥
जग जाचक सब शोक नसायो नन्द सबहि सम्पतिहि लुटायो।
बची एक बछिया छछिया, नहि दीनी दान दराज॥
श्री बदरीनारायण कविवर बजत बधाई आज सवैघर।
चारन, वन्दी-जन की छाई मंगल मई अवाज॥९५॥
परच
आनन्द नन्द घर छायो आज।
छवि छाय रही वृज में औरै सुखमा सुरपुरहिं लजायो आज।
सुभ साज जन्म वृजराज आज चहुँ ओर बधाई रही बाज।
कविवर बद्रीनारायण जू सुर हरखि सुमन बरसायो आज॥९६॥
ए री सखि लखि छबि नागर नट की॥टेक॥
चुभी चितौनि गई गड़ि सोभा, मोर मुकुट कटि पट की।
वा बिलोकि सुधि रहत न आली औघट घाटन घट की॥
लँगर डगर रोकत नहि मानत गोकुल बंसीबट की।
बद्रीनाथ आज कुञ्जनि बिच धरि बहियाँ मोरी झटकी॥९७॥
परच की ठुमरी
उन बिन जिय निकसत तरसि तरसि॥टेक॥
अँधियारी कारी लगत रैन,
डरपत अतिं जिय पिय विन छिन छिन।
पुरवाई पवन बहत झूँकन करि,
विकल देत तन परसि परसि॥