पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४५४

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सोरठ


सयानी अलिन बीच इन गलिन, आज सौं न आइयो हो यार॥टेक॥
बृजबासी, बैरी बिसवासी, तासौ विनय करत यह दासी,
मेरो लै लै नाम, न बंसी बजाई थी हो यार॥
कालिन्दी के कूल कुञ्ज में, अलि गूँजत छबि अमल पुंज में,
मम जुग चखनि चकोर, चन्द मुख दिखावना हो यार॥
बद्रीनाथ यार दिलजानी लोक लाज कुल कानी,
तासों अब तो प्रीत परस्पर छिपवाना हो यार॥८५॥

सोहनी


मतवारे रतनारे तेहारे नैन मैन के बानैं॥टेक॥
तान कमान कान लौं भौंहें बिकल करत तन प्रानैं।
श्री बद्रीनारायन जू टुक दरद न दिल में आनैं॥८६॥

बिहाग


लखियत कत मुखचन्द उदास॥टेक॥
मानहु मन्द जलज सन्ध्या गुनि रबि बिछोह सी त्रास।
पिया प्रेमघन प्यारी काहे सीरी लेति उसास॥८७॥

वा जोबन मतवारी प्यारी देख्यो कोउ या ठौर॥टेक॥

कुन्दन बरन हरन मन रञ्जन,
गात ललित लोचन जुत अंजन।
खंजन मीन मधुप मद गंजन,
चितवन की छबि न्यारी॥
आनन अमल इन्दु छबि छाजत,
कुन्तल अवलि कपोल बिराजत।
अमी अचौत सरस सुख साजत,
मानहु सांपिन कारी॥