पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४३८

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जनु कछु...अनुमानत॥टेक॥
श्री बदरी नारायन कबिवर
कनक कुम्भ सम पीन पयोधर
जनु राखी चतुरानन विष भर,
दरसत ही लेते सुध बुध हर,
होते अन्त प्रान गाहक
नहिं नेक दया उर आनत ॥१६॥

चितवन वारी छवि न्यारी, (तव)
तिरछे दृग की प्यारी॥टेक॥
श्री बदरी नारायन प्यारे, मत वारे भारे रतनारे,
छीन मीन करि देत निहारे, कंज खंज अलि कीनों कारे,
काटन हेत करेजन प्रेमिन—मनहुँ मनोज कटारी॥१७॥

रोकत श्याम जाँव कित पानी॥टेक॥
जान न देत छैल जसुदा को,
रोकत बाट सदा हठ ठानी।
गाली देत बीच मुरली के,
वनमाली आली अभिमानी॥
बद्रीनाथ विलोकत वाके,
छूटत लोक जात कुल कानी॥१८॥

बँसुरिया रे टेरत है बलवीर॥टेक॥
बंसी तान सुनाय कान तिन,
जियको करत अधीर।
चंचल चखनि बिलोकनि बाँकी,
मनहुँ मयन की तीर॥