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मयंक महिमा

यह आपकी अन्तिम रचना है, इसमें खड़ी बोली की प्रतिष्ठा करके कवि ने मानो अपनी लेखनी को विश्राम देना ही सोच रखा था। सुन्दर उपमायें, उच्चभाव तथा परिमार्जित भाषा की आपकी यह उत्कृष्ट रचना है।

सं॰ १९७९