पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४१०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
—३८४—

लौटि इतै सों आप जिहि कहे देस निज जाय।
सफल होन हित सो दिवस दियो ईस दिखराय॥
तासु राज अभिषेक हित जौ आये तुम आज।
बड़भागी भारत भयो अवसि अहो महाराज॥

बरवै


भारत भारत भूपति नव संयोग।
टारन दुख दल कारन सब सब सुख भोग॥

दोहा


स्वागत महरानी सहित तुम हित भारत भूप।
बड़े भाग सों पाइयत ऐसे अतिथि अनूप॥
तव उदारता कुलागत दयालुता की बानि।
न्याय निपुनता धीरता गुनि नृप गुन गन खानि॥
पलक पाँवड़े आप हित जो पैं देहिं बिछाय।
लोचन जल पद युगल तुव धोवैं हिय हरषाय॥
सब कछु वारैं आप के ऊपर तौहूँ थोर।
लखि तुव गुरुजन राज कृत गुरु उपकारनि ओर॥

हरिगीती


प्रथमहु सबै सुभ समय पर भारत प्रजा हरखाय के।
निज राज भक्ति दिखाय दीनि यदपि जगत लजाय कै॥
इहि बार पंचम जार्ज! पै आदर्श नृप तुहिं पाय के।
सब आस पूजी गुनि रहीं उत्साह अति दिखराय कै॥

तोटक


घर ही घर मंगल मोद मच्यो।
सबही जनु ब्याह विधान रच्यो॥