पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३९४

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आराधते ईश हैं सुलभ सोचते सकल उपायें।
सफल मनोरथ हो वे अपना सुयश जगत फैलायें॥
दया वारि के बूँद प्रेमधन ईस रहे बरसाता।
सानुकूल रह इन पर भारत उन्नति पथ दरसाता॥

और भी


आर्य्य जाति का हो अभ्युदय भूमि भारत पर।
सत्य सनातन धर्म अटल हो उन्नत होकर॥
सुख समृद्धि धन अन्न शिल्प विज्ञान ज्ञान वर।
बसैं यहाँ सब बिद्या कला कलाप निरन्तर॥
एकता धीरता प्रेमघन देशभक्ति स्वाधीनता।
हरि वैर फूट अन्याय सँग हरै दोष दुख दीनता॥