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स्वागत पत्र
अब राष्ट्रीय संस्थाओं तथा जातीय सम्मेलनों का प्रादुर्भाव हो चुका था।
"बहुत दिनन सो आरत भारत देस।
सहत प्रजा नित जिनकी कठिन कलेस।"
की भावना कवि के हृदय में जागरित हो उठी। साथ ही साथ कवि-हृदय में "हीन दशा निज जाति देखि अतिशय अकुलाने" की भावना भी जाग्रत हुई। कवि अपने जाति भाइयों से उन्नति करने का सन्देश देता।
सं॰ १९६२