जब जुबराज स्वरूप में स्वागत हित हरखाय।
उमड़्यो भारत सिन्धु ससि तुव मुख दरसन पाय॥
तन मन धन वार्यो प्रजा तुम ऊपर अवनीस।
दियो सबन के संग जब हमहूँ यह आसीस।
सवैया
लहि नीति भलें प्रजा पालिकै आछे बनो सदा भारत प्रान पियारे।
जीयो हजार बरीस लौं द्योस हजार बरीस समान जे भारे॥
बद्री नारायण होय प्रताप अखंड महा महराज हमारे।
यों चिरजीवी सदाईं रहो सुखसों विक्टोरिया देवि दुलारे॥
हरिगीती
इन सकल सुभ अवसरन पर भारत प्रजा हरखाय कै।
निज राजभक्ति दिखाय दीन्यो सकल जगत लजाय कै॥
किमि चूकतीं जो दुख सहत बहु दिन रहीं बिलखाय कै॥
सब भाँति सुख ही लहीं सासन श्रीमती जिन पाय कै॥
दोहा
कियो राज राजेसुरी जो भारत उपकार।
ताहि भला कैसे कोऊ कहिकै पावे पार॥
हरिगीत
यह सकल उन्नति औ सुगति लखि परत है जो इत भई।
उन कीन उनविंसति सताबदि संग पूरन सुख मई॥
अरु बीसवीं की बची उन्नति भार भारत की नई।
धरि सीस पैं श्रीमान् के संगहि अनोखी ठकुरई॥
सुख भोगि राजदराज राख्यो एकहूनहिं अरि कहीं।
परिवार सुन्दर सहित पूरन आयु सत कीरति लहीं॥