पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३५१

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लालित्य लहरी[]

वन्दना

दोहा



जयति सच्चिदानन्द घन, जगपति मंगल मूल।
दयावारि बरसत रहो, सदा होय अनुकूल॥१॥
जय २ मानव रूप धर, सकल जगत करतार।
जयति दुष्ट दल दलन श्री, कृष्ण हरन भूभार॥२॥
जय जय जगजीवन करन, भक्तन को प्रतिपाल।
जय राधा रानी रमन, सदा बिहारी लाल॥३॥
शोभा सत सौदामिनी, सहित सदा अभिराम।
श्री राधा संग प्रेमघन, हिय राजहु घनश्याम॥४॥
जय वृजचन्द अमन्द मुख, राधा चन्द चकोर।
जयति श्याम घन प्रेम घन, जीवन धन चित चोर॥५॥
जय २ जय घन श्याम छबि, छाज नव घन श्याम।
जय जय नट नागर सरस, गुन आगर सुख धाम॥६॥
नवल नील नीरद रुचिर, रुचि मोहत मन मोर।
दामिनि दुति कामिनि सहित, फेरि दया दृग कोर॥७॥
बरसाने वारी सहित, बरसत रस चहुँ ओर।
सदा सहायक प्रेमघन, जय जय नन्द किशोर॥८॥
बसहु सदा घनश्याम हिय, सौदामिनी सरूप।
जय राधा माधव मिली, जोरी युगुल अनूप॥९॥


  1. प्रेमघन जी इस दोहावली को ७०० दोहों से विभूषित करना चाहते थे, पर यह ग्रन्थ भी असमाप्त रह गया।