पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३२२

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आनन्द बधाई हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होना चाहिए, यह विचारधारा भारतेन्दु काल में ही प्रादुर्भूत हो चुकी थी। प्रेमघनजी ने हिन्दी के महत्व, तथा उर्दू भाषा को कमियों की ओर उसी समय में बतलाना प्रारम्भ कर दिया, कवि श्री मेकडोनल को धन्यवाद देता है और साथ ही साथ सर आइजेक पिकाट डाक्टर द्विजेन्द्रलाल आदि के विचारों को भी नागरी भाषा के प्रति व्यक्त करता हुआ नागरी को भारत की राष्ट्रभाषा मानी जानी चाहिए, अपने इन उद्गारों को बड़े सुरुचिपूर्ण ढंग से इस कविता में प्रतिष्ठित किया है। सं० १९५८