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२९२ येस |-ब भारत की प्रजा आसीसत उठि रोज। येस [--त संबत लौं जियें पालि प्रजा ज्यों भोज । टी-का सम या मेदिनी के यह भारत भूमि। येच हुंओर प्रसिद्ध जग फिरौ भलें किन घूमि॥ ई-ति भीति सों नित दुखी रही जु यह कछु काल। ई-स कृपा भागनि भई या आप यम-सम यवनन सों दलित रही, भई हत हीन। पी-र हरी बहु आप नै कै निज राजअधीन। दयाल॥