२५९ खुदा के है अजब कुदरत शान की। जानकी दुशमन हुई है जानकी॥ कहाताथा जमाने में जो एक दिन हूर का बच्चा। वही क्या बन गया अब देखिए लंगूर का बच्चा। आये अनखाये संकष्टहरण' गुर के घर जाय जाय पढ़त मार खाय खाय। संध्या को संध्या करि लौटे हैं घर माँ॥ शर्मा। खेमटा गोरे चमड़े की चकती चलओ बचाटे॥ इन गोरे गुलगुल गालन पर लखन लोग लुभाओ बचा। नाक छेदि नकछेद अहिर की बाबू लाल बुलाओ बचा। माजी को माई देकर बबुआजी को विलमाओ बचा। मन्नू लाल बहादुर मल बुढवन को काहे सताओ बचा। राग इमन मरम न जानत मनवां मन की॥टेक।। चन्द अमन्द चरन दिलखलावत, चयलित लोचन चारू चलावत, रहतन बुधि वावरी बनावत सुध न धाम का मनकी। चित चोरे पर नहीं निहारै जानि जदपि तौ हूँ दृढ़ धारै, मन पीपी तेहि नाहिं विसारै, जपत जाप ना मनकी। वह इत भूले हू नहिं आवै औरन संग रहि नहिं छवि भावै कोऊ जाय न हाय छुड़ावै संगति इनके मनकी। १. एक ब्राह्मण विद्यार्थी।
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२८९
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