पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२७३

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मंगलाशा अथवा हार्दिक धन्यवाद रोला छन्द धन्य ! दिवस यह जानहु भारतवासी भाई। धन्य! भूरि भागन सों आज घरी यह आई। धन्य धन्य जगदीश सच्चिदानन्द दया मय। सदा सबै थल परिपूरन करुना बरुनालय ॥ सब के पालक रच्छक सुहृद समान न्यायधर। दियो मंगलाशा भारत कहँ धन्य कृपाकर ।। धन्य भूमि भारत सब रतनन की उपजावनि। वीर विबुध विद्वान ज्ञानि नर बर प्रगटावनि॥ यदपि सबै दुखसों सब भाँति भई है आरत। तऊ अनन्य अनेक सुतन अजहूँ लौं धारत॥ यथा एक सोई है जाकी सुयश पताका। फहरत आज अकास प्रकासत भारत साका॥ लखत जाहि जग कौतुक लौं अचरज सों मानत। अहैं मनुज भारत मैं अजहूँ लौं जिय जानत। तासों धन्यवाद परमेसहि देहु अनेकन। करहु सफलता हेतु बिनय सब कै विशुद्ध मन॥ जाकी कृपा प्रभाय गयो भारत को दुरदिन। यह अंगरेजी राज इतै आयो प्रयास बिन ॥