पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२५४

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२२३ कपटीन सों क्यों घनप्रेम करें, हमै ओछो सनेह सुहात नहीं। दिल देय तों देखत ही पै कोऊ, दिलदार तो हाय दिखातै नहीं। बौधन के हांथ बुधि बेचु ना जइन होय, नान्हक कबीर दादू पंथ जनि गहुरै। कीनाराम सालिग्राम राजा राम मोहन औ, आलकट दयानन्द के न दुख दहुरे॥ मूसा औ मोहम्मद सों मूसा जनि जाय तैसे, भूले पादरीन को न भूलि सीख लहुरे। प्रेमघन धारि प्रेम घन मन मेरे नित्य, राधाकृष्ण राधाकृष्ण राधाकृष्ण कहुरे। गोल कपोलन पै मन हारी, लसैं लट काली लटें छटि छूटी। लागिह डीठि कहूँ न कहूँ, मन मैन की मूठि न जासु है बूटी। मान कही घन प्रेम न तो, धन जोबन सों बनि जाइहौ लूटी। सारी न सूही सुगन्ध सनी, सजि प्यारी चलो बन बीरबहूटी। जामिनी नेह के चन्द अमन्द, सुया दुखियाँ अँखियान के तारे। चित्त चकोर लौं मानत नाहिं, बिना तुव रूप अनूप निहारे॥ चातक लौं घन प्रेम तुम्हें, लखते ही बजावै चबाव नगारे। श्याम सयानअलीन बचायकै, आइये हयां की गलीनमैप्यारे॥ प्यारे पिया परदेस बसे, बर बैस वियोग में खोवती हैं। अँखिया घन प्रेम भरी मग जोहत, आसुन तें तन धोवती हैं। निसि पावस में बड़भागिनी वै, सुख साजे संजोग संजोगती हैं। सुथरी सेजिया सजि सूहे दुकूलन, सों पिय के संग सोवती हैं। (भारतेन्दु के समस्या की पूर्ति) प्रीति वर्षा की और रीति वर्षा की, मानवारी प्रानहारी नीति यार वर्षा की है।