२२२ साँसति मिलान की दसा त्यों जुग फूटिवे की, देखि सीख लेहु चहे चौंसर नरद सों प्रेमघन हैं जो प्रेम भाजन ते एक जानें, लेन मन मारि कै कटाछन करद सों। फेरि प्रेमी चातकनि छाया न छुआवै, ललचावै नेह नीर सूने नीरद सरद सों। चाह की न चाह में छलावै चित भूलि जासों, दिल न लगावै हाय काहू बेदरद सों॥ की। मान करि तान जुग भौंहन कमान, जाय सूती सेजियान चढ़ि ऊपर अटान की। थाक्यो मन भावन मनाय पै न मानी कान, मानिनी दियो ना बीनतीन पै सुजान ताही समय कहरान लागे मुरवान, प्रेमघन उमड़ान चमकान चपलान को। डरन डेरान चौंकि परी छतियान, लगी प्रीतम सुजान सुन धुन धुरवान की। जनु जुग जंघ कछू भार लौं लये हैं हा हा, दौरिबे मैं मेरे पाय ससकि ससकि जाय। ख्याल ही भुलानो कछु खेल को भयो धौ कहा, नैनन मैं मानो नींद कसकि कसकि जाय॥ प्रेमघन तेरी सौंह लोम उलहत आवै, लीन्हे हूँ उसास चोली मसकि मसकि जाय । क्योंहू बान्हि राखू कसि कसि बन्द घांघरी के, तौ हूँ देखु बीर चीर खसकि खसकि जाय॥ मन मानिक लइबे मैं तो प्रबीन, कै दीन दया दरसातै नहीं। अनरीत हजार हमेस करै, हँसि प्रीति की रीत की बात नहीं।
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२५३
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