पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१९७

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शोकाश्रु विन्दु "फ़िराके यार में रोने से क्या तस्कीन होती है। जिगर की आग बुझ जाती है दो आंसू जहां निकलें।" सवैया अथयो हरिचन्द अमन्दसो भारत चन्द चहूँ तम छाय गयो। तरु हिन्दुन के हित उन्नति को बढ़त अबहीं मुरझाय गयो। गुनराशि जवाहिर की गठरी अनमोल सो कौन उठाय गयो। नित जाके गरूर से चूर रह्यो वह हिन्द ते हाय हेराय गयो। दोहा श्री राजा हरिचन्द सो भारत चन्द अमन्द। हा हरिचन्द समान सो अथै गयो हरिचन्द ॥१॥ रहे अहें फिर होयँगे सुकवि चन्द हरचन्द। हिन्द चन्द हरिचन्द सो नहि कवि चन्द अमन्द ॥२॥ जाके कर के कलम के कह के करे प्रकाश। जगमगात जाहिर रह्यां भारतवर्ष अकाश ॥३॥ चतुर चकोर सदा सबै जीवत जाहि निहार। कविता सरस सुहावनी सत्य सुधा को सार ॥४॥ राज खुशामद तें प्रजा दुखद स्वारथी चोर। जा प्रकाश उर दबि रहैं लखि न परै कोउ ओर ॥५॥ देश हितैषी कुमुद गन के विकास को हेत। देश धर्म बैरीन कुल कमल नाश कर देत॥६॥ १. भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र जी को मृत्यु पर विरचित सम्वत् १९४२॥ १२