पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/१४५

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बृजचन्द पंचक

दोहा

श्री शीतल मन बीच के-विहरन हारे श्याम।
जयति २ जय जयति जै-मंगल करन मुदाम॥१॥

(कुंडलिया)

मुरली राजत अधर पर उर विलसत वनमाल।
आप सोई मो मन बसौं सदा रँगीले लाल॥
सदा रँगीले लाल देहु रंगि मो हिय निज रंग।
टरौ न इन अंखियन तै-कबहूँ निज प्यारी संग॥
बद्रीनारायन जेहि लखि २ मनमथ लाजत।
आय सोई मन बसौ जासु कर मुरली राजत॥२॥

(छप्पै)

जय श्री गोकुलनाथ जयति जसुदा के बारे।
जय वृजचन्द अमन्द प्रभा परकासन हारे॥
जय श्री वृन्दा विपिन बीच नित बिहरनहारे।
जय त्रिभंग तन श्याम सीस सुभ मुकुट सुधारे॥
जय कंस निकंदन सुख सदन जय २ श्री गिरिवर धरन।
बद्रीनारायन जयति जय-जय २ मुद मङ्गल करन॥३॥
जय मुकुन्द मधुसूदन माधवमदन लजावन।
जय मुरारि मथुरेश मधुर मुरलीहि बजावन॥
जय बनवारी बनमाली बनमाल सजावन।
जयति बिहारी बालवेस त्रैताप नसावन।