मंगल राधा श्याम मंगल मैं वृन्दाविपिन। मंगल कुंज मुदाम-मंगल बद्रीनाथ द्विज। मंजुल मंगल मूल-जुगल सुमंगल पाठ यह। पढ़त रहत नहिं सूल-जुगल जलज पद अलि बनत।