महादेव के मस्तक पर चंद्र को ( सनातनी होने पर भी)
'बालविधु' ही कहेगे।
सहज सिंगारत सुंदरी, जदपि सिंगार अपार ।
तदपि बखानत सकल कबि, सेारहई सिंगार ॥ १६ ॥
( सोलह सिंगारों के नाम)
[---प्रथम सकल सुचि, मज्जन, अमलबास,
जावक, सुदेशै केशपासनि सुधारियो ।
अंगराग, भूषण विविध, मुख बास राग,
कज्जल कलित, लाल लेाचन निहारियो ।
बेलनि हँसनि चित चातुरी चलनि चारु,
पल पल प्रति पतिव्रत परिपारियो ।
केशोदास सबिलास करहु कुँवरि राधे,
यहि विधि सोरह सिंगारन सिंगारिबो ॥ १७ ॥
( व्याख्या)-(१) सकलसुचि =शौच, दंतधावन, उबटनादि
करना। (२)मजन = स्नान। (३)अमल बास= स्वच्छ बस्त्र धारण
करना । (४) जावक पैरों में महावर भराना। (५) केश-
पाश सुधारिबो- बाल संवारना । अंगराग = अंगों में विविधि
रंगों से कुछ चिन्ह बनाना। इसके अंतर्गत पांच सिंगार हैं
(६) मांग में सिंदूर भरना (७) भाल पर खौर (८) गाल
और चिबुक पर तिल बनाना (९) उरस्थल पर केशर मलना
(१०) हाथों में मेंहदी लगाना । भूषण जेवर । ये दो प्रकार
के होते हैं । (११) पुष्पभूषण ( १२) सुवर्ण भूषण । (१३)
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चौथा प्रभाव