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प्रिया-प्रकाश


( कवि भेद बर्णन) मूल---केशव तीनहु लोक में, त्रिविध कविन के राय । मति पुनि तीन प्रकार की, बरनत सब सुख पाय ॥१॥ उत्तम मध्यम अधम कवि, उत्तम, हरि रसलीन । मध्यम मानत मासुपनि, दोषनि अधम प्रवीन ॥२॥ भावार्थ-तीन प्रकार के कति होते हैं। उत्तम कवि केवल हरि के यश कहते हैं-जैसे बाल्मीकि, तुलसीदास, सूरदास इत्यादि, मध्यम कबि मानव चरित्र वर्णन करते हैं-जैसे चन्द बरदाई भूषण, सूदन और लालकषि इत्यादि, तथा अधम कधि केवल परनिंदात्मक कबिता (अंडोत्रा) करते हैं, जैसे बेणी प्रवीन ! (पुन यथा) सूल-हैं अति उत्तम ते पुरुषारथ जे परमारथ के पथ सोहैं । केशवदास अनुत्तम ते नर संतत स्वारथ संयुत जो हैं ।। स्वारथ हू परमारथ भोग न मध्यम लेोगनि के मन मोहैं। भारत पारथमित्र कहौ परमारथ स्वारथ हीन ते को हैं ॥३॥ शब्दार्थ-मध्यम =अतिनीच पारथमित्र = श्रीकृष्ण । भावार्थ-वे लोग अति उत्तम हैं और वही सच्चे पुरुषार्थ वाले कबि हैं जो परमार्थ पथ पर चलते हैं नर्थात् केवल हरिगुण कहते सुनते हैं। और कानुत्तम (अर्थात् दूसरे दर्जे के) कवि वे हैं जो सदैव स्वार्थ साधन में लगे रहते हैं (अर्धात्