पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रिया-प्रकाश पर वह मपनमणि (सुन्दर नायक अर्थात् कृष्ण) किसी की और ध्यान नहीं देता, क्यों कि वह भले मानसों की शुभचाल पर चलने वाला है (एक तुझ पर ही अनुरक्त है) अतः मैं नुसूचित करती हूं कि वह नायक इस समय ताल के तट पर बैठा तेरी प्रतीक्षा कर रहा है (एकान्त स्थल है, त वहाँ चन कर उस से मिल) (विशेष)-'माधव' शब्द में विशेषता है अर्थात् वह (मा= लक्ष्मी, धव-पति) लक्ष्मी समान सुन्दरी खियों का पति है, तू अपने सौन्दर्य और वैभव का अहंकार छोड़ कर उससे मिला (सूचना) अब इसी ऊपर लिखे हुए छंद ०६७ के प्रत्येक चरण को उलट कर पढ़े तो नीचे लिखा रूप होगा और इसका अर्थ कुछ और ही होगा। मल-बैंस सबसु सदेसु खरे यस के रस ज्यों बध मान नसै। लैफल कामिनि बैस रची चिरुनीरुत जी चितकी वनने ॥ है धन कोसु, ति, री, घर धीर धरी भर भी सजनी सुन हैं। सैल बसी रस मैं नव सोभ सु ले चल चारु गुनी मन मैं १६८ शब्दार्थ-बैस युवा अवस्था । ससु-( सवेश ) अच्छे मेल धाला । सदेलु = ( सदेश) एक देश में रहने वाला ( एक गांव का निवासी)। खरे बसकै - अच्छी तरह से अपने पश में भरले । ज्या वध मान जी को बध करने वाला मान । बस रबी युवावस्था से अनुरक (पूर्ण युवती)। नीस्त जी-जीव त्रण (पशु पक्षी इत्यादि) खामोश हैं। चित की यन ने बित में सोची पात बन पड़ेगी।