साधार्थ-जैसे सोना तोलने का कांटा (तराजू) केवल प्राधे
तिल के भारभेद से बराबर नहीं रह सकता--प्राधे तिलके
बोझ से भी पलरा भुक जायगा-वैसेही कविता सुनने में
सधे हुए कान छन्दोभंग दोष को सुन नहीं सकते अर्थात्
कविता सुननेवाले सुपटु कानों को तनक भी छंदोभंग
खटकेगा।
३-[छंदविरोधी पंगुदोष का उदाहरण ]
भूल-धीरज मोचन लोचन लोल विलोकि कै लोककी लोकति छूटी।
फूटिगये श्रुतिज्ञान के केशव आंखि अनेक विवेक की फूटी ।।
छोडिदई शरता सबकाम मनोरथके रथकीगति खूटी ।
त्यों न करै करतार उबारक ज्यों चितई वह बारबधूटी ॥१२॥
शब्दार्थ-लोल चंचल । लीक - राह ।
चलाना, नीरंदाजी । खूटी बाधित हुई, रुक गई । उचारक -
और एक बार । बार बधूटी = धेश्या ।
भावार्थ-धीर छोड़ाने वाले उन बचत नेत्रों को देखकर मुझसे
लोकाचार की राह अत्यंत छूट गई। जान के कान और
विवेक के भनेक नेत्र भी फूट गये [शान धिमेक जाता रहा ]
उन नेत्रों से लज्जित होकर काम ने तीरंदाजी छोड़दो और
मनोरथ के रय की गति रुक गई [सन की गति से भी बे नेत्र
अधिक चंचल हैं) अतः जैले एक बार वह बारमधूटी मेरी
ओर चितई है अव करतार और ऐसा अवसर न आनंद
तो अच्छा है।
विवेचन)--यह छंद मनगयंद सरैया है। इसके प्रत्येक नरमा
७ भाषा और दो गुरु होते हैं । इस छंद का शुद्ध निथम यही है
शरतावाण
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प्रिया-प्रकाश